रायपुर, छत्तीसगढ़: Hareli Tihar 2025 : छत्तीसगढ़ का लोकपर्व ‘हरेली तिहार’ (Hareli Tihar 2025) आज, 25 अगस्त, 2025 को पूरे राज्य में धूमधाम और पारंपरिक उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। सावन मास की अमावस्या को पड़ने वाला यह त्यौहार छत्तीसगढ़ी कैलेंडर का पहला त्योहार है, जो मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरे संबंध, कृषि उपकरणों के प्रति कृतज्ञता और लोक संस्कृति के जीवंत रंगों को दर्शाता है।
Hareli Tihar 2025 : क्यों है हरेली तिहार खास?
हरेली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की मिट्टी, मेहनत और ममता का प्रतीक है। यह वह समय है जब किसान अपनी फसलों की बोआई का काम पूरा कर लेते हैं और अब उन्हें प्रकृति से अच्छी उपज की उम्मीद होती है। इस दिन किसान अपने खेती-किसानी के औजारों जैसे हल, कुदाल, गैंती, फावड़ा आदि की साफ-सफाई कर उनकी पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये औजार ही किसानों की जीविका का आधार हैं और इनके प्रति सम्मान व्यक्त करना अनिवार्य है।
यह त्योहार सांप्रदायिक सद्भाव और प्रकृति के प्रति सम्मान की भावना को भी पुष्ट करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस दिन लोग घर-घर जाकर नीम की पत्तियों को अपने दरवाजों पर लगाते हैं, जिससे नकारात्मक ऊर्जा और बीमारियों से बचाव हो सके।
पूजा से लेकर पकवान तक: परंपराओं का संगम
हरेली के दिन सुबह से ही घरों और खेतों में उत्साह का माहौल रहता है।
- औजारों की पूजा: किसान अपने कृषि औजारों को धोकर, साफ कर हल्दी-कुमकुम लगाकर, फूल चढ़ाकर और छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का भोग लगाकर उनकी पूजा करते हैं। इस दिन विशेष रूप से लोहे के औजारों की पूजा का विधान है।
- गेड़ी का खेल: हरेली पर बच्चों और युवाओं में गेड़ी चढ़ने का विशेष उत्साह रहता है। बांस से बनी गेड़ी पर चलना ग्रामीण जीवन की एक पारंपरिक कला और मनोरंजन का साधन है। यह संतुलन और कौशल का प्रतीक है।
- पारंपरिक पकवान: इस अवसर पर घरों में कई तरह के छत्तीसगढ़ी पकवान बनाए जाते हैं। चीला (चावल के आटे का मीठा या नमकीन पकवान), फरा, ठेठरी, खुरमी जैसे व्यंजन प्रमुख रूप से बनते हैं, जिन्हें परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर खाया जाता है।
- जादू-टोना और टोटके: कुछ ग्रामीण इलाकों में हरेली को टोनही (जादूगरनी) और जादू-टोना से बचाव के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन कई तरह के ग्रामीण टोटके और उपाय किए जाते हैं।