भोपाल। MP News : देशभर में प्रसव के दौरान माताओं की मौत के आंकड़ों को लेकर आई एक ताज़ा रिपोर्ट ने मध्यप्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की 2020-2022 की रिपोर्ट के अनुसार, मध्यप्रदेश में एक लाख प्रसव पर 159 माताओं की मौत हो रही है, जबकि देश का औसत मात्र 88 है। यानी एमपी की मातृ मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुनी है।
MP News : इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि मातृ मृत्यु दर के मामले में मध्यप्रदेश देश में पहले स्थान पर है। बिहार (91), राजस्थान (87), गुजरात (55), महाराष्ट्र (36) और केरल (18) जैसे राज्यों ने इसमें बेहतर स्थिति दर्ज की है। केरल में मातृ मृत्यु दर सबसे कम है।
हालांकि, पिछले आंकड़ों से तुलना करें तो प्रदेश में मामूली सुधार जरूर हुआ है। 2019-21 के दौरान मातृ मृत्यु दर 175 थी, जो अब घटकर 159 हो गई है। लेकिन सुधार की ये दर अब भी बहुत धीमी और चिंताजनक बनी हुई है।
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सरकार का दावा है कि राज्य में मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। संबल योजना, एनीमिया और मधुमेह की जांच, प्रसव पूर्व पंजीकरण, चार बार जांच की अनिवार्यता, और पोषण आहार की सुविधा जैसी व्यवस्थाएं लागू हैं। इसके साथ ही 2024-25 में बजट बढ़ाकर 4418 करोड़ रुपए कर दिया गया है, जो पिछले साल 3531 करोड़ रुपए था।
लेकिन इस सबके बावजूद, ये सवाल खड़ा होता है कि जब योजनाएं, सुविधाएं और बजट सब मौजूद हैं, तो माताओं की जान क्यों नहीं बच पा रही है? विशेषज्ञ मानते हैं कि जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता, जागरूकता की कमी, और ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों की भारी कमी ही इस मौतों का असली कारण है।
अब ज़रूरत इस बात की है कि आंकड़ों में नहीं, हकीकत में सुधार लाया जाए। क्योंकि हर एक माँ की मौत सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि पूरे परिवार की उम्मीद का अंत होता है।