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“एक शांत विजेता – रतन टाटा की कहानी” उस आदमी की दास्तान जिसने भारत को दुनिया के सामने झुका नहीं, खड़ा किया।

Entertainment: कभी-कभी कोई व्यक्ति ऐसा होता है जो ना चीखता है, ना शोर करता है, ना खुद की पीठ थपथपाता है… फिर भी उसके काम इतने ऊँचे होते हैं कि पूरी दुनिया उसकी तरफ देखने लगती है। रतन टाटा ऐसे ही इंसान हैं। एक ऐसा नाम, जो सफलता की परिभाषा नहीं, बल्कि उसका स्तर है।

29 दिसंबर 1937, मुंबई। एक पारसी परिवार में जन्मा एक मासूम बच्चा जिसे किसी ने नहीं बताया कि वह बड़ा होकर एक दिन टाटा समूह का चेहरा बन जाएगा। 10 साल की उम्र में माँ-बाप का अलग हो जाना, फिर दादी के साथ पला-बढ़ा – यह सब कठिन जरूर था, लेकिन यही नेत्रत्व की पहली सीढ़ियाँ बनीं। रतन टाटा ने Cornell University से आर्किटेक्चर पढ़ा, और बाद में Harvard Business School से मैनेजमेंट। लेकिन उनके लिए डिग्री से ज्यादा ज़रूरी था जमीन से जुड़ाव

रतन टाटा जब टाटा समूह में लौटे, तो कोई विशेष पद नहीं मिला। उन्हें टाटा स्टील के प्लांट में भेजा गया – जहाँ उन्हें हेलमेट पहनकर कामगारों के बीच काम करना होता था। शायद वहीं उन्होंने सीखा कि लीडर वो नहीं जो ऑफिस में बैठकर ऑर्डर देता है, लीडर वो है जो लोगों के साथ मिलकर मिट्टी से सपनों की इमारत बनाता है।

1991 में जब उन्होंने टाटा समूह की बागडोर संभाली, तो बहुत से आलोचकों ने कहा – “यह नहीं संभाल पाएंगे।” लेकिन उन्होंने जवाब अपनी चुप्पी से दिया… और काम से साबित किया कि वे सिर्फ योग्य ही नहीं, अद्वितीय हैं। उन्होंने टाटा टी, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस (TCS) जैसी कंपनियों को एक नई दिशा दी।

2008 में, उन्होंने Nano कार दुनिया को दिखाई — एक कार जो सिर्फ़ 1 लाख रुपये में आम आदमी का सपना पूरा कर रही थी। लोगों ने इसका मज़ाक उड़ाया, पर रतन टाटा मुस्कुराए और कहा — “मैं सिर्फ़ उस पिता के लिए ये कार बना रहा हूँ जो अपनी पत्नी और बच्चों को स्कूटर पर बैठाकर ले जाता है।” यह महज़ कार नहीं थी, यह करुणा से जन्मा एक आइडिया था।

जब टाटा मोटर्स ने जगुआर और लैंड रोवर जैसी लग्ज़री ब्रिटिश कंपनियों को खरीदा, दुनिया चौंकी। ये वही कंपनियाँ थीं जिन्हें पहले टाटा को बेचने से मना कर दिया गया था। लेकिन रतन टाटा ने बदला नहीं लिया, बल्कि सम्मान से जवाब दिया — और दुनिया ने भारतीय नेतृत्व को नए नज़रों से देखना शुरू किया।

रतन टाटा केवल उद्योगपति नहीं हैं, वो एक विचार हैं। उन्होंने कभी शादी नहीं की, लेकिन पूरे देश को अपना परिवार समझा। टाटा ट्रस्ट्स के ज़रिए उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास में अरबों रुपये दान किए।

उन्हें खुद प्रचार पसंद नहीं है, लेकिन उनका हर कदम प्रेरणा देता है।

पुरस्कार और सम्मान

  • पद्म भूषण (2000)

  • पद्म विभूषण (2008)

  • मानद डॉक्टरेट्स – दुनिया की कई प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज़ से

  • साइलेंट हीरो अवॉर्ड – लोगों के दिलों में

 

रतन टाटा का निधन: एक युग का अंत

रतन नवल टाटा, भारत के प्रतिष्ठित उद्योगपति और टाटा समूह के मानद चेयरमैन, का 9 अक्टूबर 2024 की रात 11:39 बजे मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें ब्रीच कैंडी अस्पताल के ICU में भर्ती किया गया था, जहाँ उनका इलाज चल रहा था। डॉक्टरों के अनुसार, उम्र संबंधी बीमारियों और लो ब्लड प्रेशर के कारण उनकी स्थिति गंभीर हो गई थी। उनके पार्थिव शरीर को मुंबई के नरीमन पॉइंट स्थित नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स (NCPA) में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया, जहाँ हजारों लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। शाम 4 बजे उनका अंतिम संस्कार वर्ली श्मशान घाट पर राजकीय सम्मान के साथ किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, और उद्योग जगत के कई प्रमुख हस्तियों ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें “दयालु आत्मा और असाधारण इंसान” बताया।

रतन टाटा न केवल एक सफल उद्योगपति थे, बल्कि एक महान मानवतावादी भी थे। उनका जीवन और कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा। रतन टाटा ने कभी भाषणों में देशभक्ति नहीं दिखाई, लेकिन उनके हर निर्णय में देश सबसे ऊपर रहा। वो बोलते कम हैं, सुनते ज़्यादा। दिखावा नहीं करते, योगदान करते हैं। और यही उन्हें एक सच्चा ‘रतन’ बनाता है — भारत के लिए, और हर उस युवा के लिए जो बड़ा सपना देखता है।

“मैं व्यवसाय को पैसे कमाने के ज़रिए नहीं, बदलाव लाने के ज़रिए देखता हूँ।” – रतन टाटा 

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