Insurance Company : बिलासपुर : छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट कर दिया है कि सड़क दुर्घटना में यदि वाहन का चालक नाबालिग भी हो, तो भी बीमा कंपनी पीड़ित परिवार को मुआवज़ा देने से इनकार नहीं कर सकती। यह फैसला दुर्घटना पीड़ितों के लिए एक बड़ी राहत और बीमा कंपनियों की जवाबदेही तय करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
यह मामला दो साल पुराना है, जब बिलासपुर में एक नाबालिग द्वारा चलाई जा रही बाइक ने एक अन्य बाइक सवार युवक को टक्कर मार दी थी, जिससे उसकी मौत हो गई थी। मृतक के परिजनों ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल (MACT) में मुआवज़े की मांग की थी।
ट्रिब्यूनल ने पीड़ित परिवार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए ₹13,65,080 का मुआवज़ा देने का आदेश दिया। हालांकि, बीमा कंपनी ने यह कहते हुए भुगतान से मना कर दिया कि चूंकि गाड़ी एक नाबालिग चला रहा था, इसलिए यह जिम्मेदारी गाड़ी मालिक की बनती है, न कि बीमा कंपनी की।
इस पर पीड़ित परिवार ने उच्च न्यायालय का रुख किया। न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई के बाद स्पष्ट किया कि भले ही गाड़ी नाबालिग चला रहा था, लेकिन पीड़ित को मुआवज़ा देने की जिम्मेदारी बीमा कंपनी की है। कोर्ट ने बीमा कंपनी को तीन महीने के भीतर मुआवज़ा देने का निर्देश दिया है। साथ ही, यह भी कहा है कि कंपनी बाद में यह रकम वाहन मालिक से वसूल कर सकती है।
यह फैसला उन सभी सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए एक नजीर बनेगा जिन्हें बीमा कंपनियों द्वारा तकनीकी आधार पर मुआवज़े से वंचित किया जाता रहा है। यह निर्णय दर्शाता है कि कानून का उद्देश्य पीड़ितों को न्याय दिलाना है, और तकनीकी खामियों का लाभ उठाकर बीमा कंपनियाँ अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकतीं।