Gwalior News : ग्वालियर/भूपेन्द्र भदौरिया : ग्वालियर के वैज्ञानिकों ने कपास की दो नई जैविक किस्में विकसित की हैं, जिनकी मांग देश के साथ-साथ विदेशों में भी बढ़ रही है। आमतौर पर कॉटन के कपड़े लोगों की पहली पसंद होते हैं, लेकिन जब अन्य कपड़ों से त्वचा में एलर्जी या खुजली की समस्या होती है, तो लोग कॉटन से भी दूरी बना लेते हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई यह नई जैविक किस्म न केवल कॉटन की गुणवत्ता को बेहतर बनाएगी, बल्कि त्वचा संबंधी समस्याओं से भी राहत दिलाएगी।
Gwalior News :मध्य प्रदेश में कपास की खेती मुख्य रूप से सात जिलों – खरगौन, धार, बड़वानी, खंडवा, बुरहानपुर, अलीराजपुर और झाबुआ – में होती है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में कीटों के प्रकोप और रासायनिक कीटनाशकों की वजह से खेती की लागत और जोखिम बढ़ने के कारण किसानों की इस फसल में रुचि कम हो गई है। कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से मिट्टी की उर्वरकता घटने लगी है, जिससे उत्पादन में भी गिरावट आई है।
Gwalior News :इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर के वैज्ञानिकों ने कपास की दो जैविक किस्में – RVJK SGF-1 और RVJK SGF-2 – विकसित की हैं। ये किस्में ऑर्गेनिक कॉटन उत्पादन में सहायक होंगी। विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. अरविंद कुमार शुक्ला ने बताया कि ये दोनों किस्में पूरी तरह जैविक हैं और इनके साथ तीन-चार अन्य किस्में भी तैयार की जा रही हैं। खंडवा कृषि महाविद्यालय, जो विश्वविद्यालय के अंतर्गत आता है, में विशेष रूप से कॉटन पर शोध किया गया है।
Gwalior News :प्रो. शुक्ला ने बताया कि सामान्य इनऑर्गेनिक कॉटन में भारी मात्रा में कीटनाशक प्रयोग होता है, जो पौधे के ज़रिए कॉटन में समा जाता है और हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक हो सकता है। कई लोगों को इससे एलर्जी हो जाती है और कपड़े पहनने में असहजता होती है। इसी कारण नॉन-जीएम और जैविक किस्में तैयार करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
Gwalior News :उन्होंने बताया कि ऑर्गेनिक कॉटन की गुणवत्ता दो आधारों पर मापी जाती है – रेशों की लंबाई और स्ट्रेंथ। इनऑर्गेनिक कॉटन की फाइबर लेंथ जहां 28 मिमी होती है, वहीं ऑर्गेनिक कपास की लंबाई 29.5 मिमी तक होती है। इसके अलावा, इनऑर्गेनिक कपास की स्ट्रेंथ 25-26 TEX होती है, जबकि ऑर्गेनिक कॉटन की स्ट्रेंथ 28-30 TEX पाई गई है। इस आधार पर भी जैविक कपास बेहतर साबित होती है।
Gwalior News :राज्य के कॉटन बेल्ट में एक समय 6.5 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती होती थी, लेकिन अब यह घटकर लगभग 544 हेक्टेयर तक रह गई है। पिंक बॉलवर्म जैसे कीट कपास की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। यह कीट कपास के बॉल को खा जाता है, जिससे पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। किसान कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन यह कीट जल्दी ही दवा के प्रति प्रतिरोधक बन जाता है, जिससे दवा असरहीन हो जाती है। इसके चलते मिट्टी की जैविक गुणवत्ता भी प्रभावित होती है और फसल का उत्पादन कम हो जाता है।
Gwalior News :कृषि विश्वविद्यालय ने इस समस्या से निपटने के लिए ‘बायोरे एसोसिएशन’ नामक एनजीओ के साथ मिलकर करीब एक हजार किसानों के साथ काम शुरू किया है। किसानों को ऑर्गेनिक बीज दिए जा रहे हैं और उन्हें रासायनिक खाद और कीटनाशक से बचने की सलाह दी जा रही है। साथ ही उन्हें जैविक खेती की प्रक्रिया और जरूरी प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है, जिससे वे बेहतर उत्पादन के साथ सुरक्षित और लाभदायक खेती कर सकें।