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Bastar Mahua Moitra Controversy : महुआ मोइत्रा के बयान पर बस्तर में भड़का आदिवासी समाज, कोंडागांव में हुआ पुतला दहन

 Bastar Mahua Moitra Controversy : कोंडागांव। तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा छत्तीसगढ़ पुलिस पर मजदूरों के अपहरण का आरोप लगाने के बाद बस्तर क्षेत्र में राजनीतिक और सामाजिक हलचल तेज हो गई है। इस बयान के विरोध में कोंडागांव जिले के सर्व आदिवासी समाज ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए महुआ मोइत्रा का पुतला फूंका और उन्हें बस्तर पर “राजनीति न करने” की चेतावनी दी।

क्या है पूरा मामला?

हाल ही में कोंडागांव पुलिस ने पश्चिम बंगाल के 9 लोगों को एक कथित गैर-कानूनी गतिविधि के तहत हिरासत में लिया था। इस पर महुआ मोइत्रा ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो साझा करते हुए छत्तीसगढ़ पुलिस पर आरोप लगाया कि उन्होंने मजदूरों को किडनैप किया है और उनके साथ ग़लत बर्ताव किया जा रहा है।

महुआ ने लिखा था:

“छत्तीसगढ़ के बस्तर में बंगाल के मजदूरों को जबरन उठाकर ले जाया गया। ये मानवाधिकार का उल्लंघन है।”

सर्व आदिवासी समाज ने जताई नाराजगी

इस बयान के बाद कोंडागांव में सर्व आदिवासी समाज ने मोर्चा खोलते हुए प्रदर्शन किया। युवा जिला अध्यक्ष यतेंद्र सलाम के नेतृत्व में समाज के लोगों ने सड़कों पर उतरकर महुआ मोइत्रा का पुतला दहन किया और आक्रोश जताया।

यतेंद्र सलाम ने कहा: “बस्तर के आदिवासियों को कोई बाहरी नेता बदनाम नहीं कर सकता। यह इलाका पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र है और यहां की संस्कृति, परंपरा और सुरक्षा को लेकर ऐसे गैर-जिम्मेदार बयान सहन नहीं किए जाएंगे।”

बस्तर सांसद की भी तीखी प्रतिक्रिया

बस्तर के बीजेपी सांसद महेश कश्यप ने भी महुआ मोइत्रा के बयान की आलोचना करते हुए कहा:

“बस्तर की जमीन पर कोई भी बाहरी नेता राजनीति करने न आए। पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशियों को बसाकर जो तबाही मचाई गई, अब वही मॉडल बस्तर पर थोपने की कोशिश हो रही है।”

पुलिस प्रशासन अब तक चुप

पूरे मामले पर कोंडागांव के एसपी और पुलिस प्रशासन की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, जिससे स्थिति और भी गंभीर बनती जा रही है। हालांकि, सूत्रों के मुताबिक, गिरफ्तार किए गए मजदूरों को किसी संदिग्ध नेटवर्क के तहत निगरानी में लिया गया था।

राजनीतिक एजेंडा या सामाजिक सुरक्षा?

यह मामला सिर्फ एक बयान का नहीं, बल्कि बस्तर की संवेदनशीलता, आदिवासी अस्मिता और राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ बनता जा रहा है। सवाल यह भी है कि क्या बाहरी राजनीतिक दल आदिवासी क्षेत्रों का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के तौर पर कर रहे हैं?

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