Wednesday, July 23, 2025
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छत्तीसगढ़ में भारतनेट घोटाला : 1600 करोड़ डूबे, 7 साल में सिर्फ 200 पंचायतों में इंटरनेट, टाटा पर बड़ा सवाल

रायपुर । छत्तीसगढ़ में भारतनेट घोटाला : छत्तीसगढ़ में डिजिटल इंडिया का सपना भारतनेट योजना के दूसरे चरण में तब चकनाचूर होता दिखा, जब 1600 करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद महज 200 पंचायतों तक ही इंटरनेट पहुंच पाया। साल 2018 में जिस योजना को एक साल में पूरा करने का लक्ष्य था, वह 7 साल बाद भी अधूरी रह गई। टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को मिले इस काम में लापरवाही और भ्रष्टाचार की बू साफ झलक रही है।

छत्तीसगढ़ में भारतनेट घोटाला : छत्तीसगढ़ इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी एजेंसी (CHiPS) ने 5987 ग्राम पंचायतों में इंटरनेट सुविधा देने के लिए टाटा प्रोजेक्ट्स को अनुबंध दिया था। लेकिन 2024 में हुई जांच में केवल 200 पंचायतों में ही इंटरनेट सक्रिय पाया गया। नतीजा ये हुआ कि मई 2025 में टाटा का ठेका रद्द कर दिया गया और 167 करोड़ रुपये की जमानत राशि जब्त कर ली गई।

चार काम, चारों में फेल
टाटा को चार अहम जिम्मेदारियां दी गई थीं – फाइबर लाइन बिछाना, पंचायतों में राउटर लगाना, नेटवर्क ऑपरेशन सेंटर बनाना और पूरे सिस्टम का रखरखाव करना। लेकिन:

  • फाइबर लाइनें कई पंचायतों में टूटी हुई मिलीं या चोरी हो गईं।

  • 30% राउटर बिना रखरखाव के खराब पड़े हैं।

  • ऑपरेशन सेंटर रायपुर में बना, लेकिन जब इंटरनेट ही नहीं चला तो उसका कोई औचित्य नहीं रहा।

  • रखरखाव के नाम पर 7 साल में एक पंचायत में भी मरम्मत नहीं हुई।

नक्सल क्षेत्र भी अछूते नहीं रहे
बस्तर और अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बीएसएनएल के सौ से अधिक टावर लगाने की योजना थी, जो टूटी या अधूरी फाइबर लाइनों के चलते शुरू ही नहीं हो पाई। जानवरों द्वारा तार काटे जाने और चोरी जैसे मामलों ने स्थिति को और बिगाड़ दिया।

डिजिटल क्रांति का सपना अधूरा
भारतनेट योजना का उद्देश्य था – पंचायतों को डिजिटल केंद्र बनाकर स्कूल, थाना और सरकारी दफ्तरों तक इंटरनेट पहुंचाना और बाद में इसे आम नागरिकों तक सस्ती दर पर देना। लेकिन जब पंचायत स्तर पर ही इंटरनेट नहीं चला, तो आगे की योजना पर सवाल उठना लाज़मी है।

अब क्या?
चिप्स द्वारा कई बार नोटिस देने के बावजूद टाटा की लापरवाही बरकरार रही। ठेका रद्द होने के बाद सरकार के पास अब चुनौती है कि इस योजना को दोबारा कैसे पटरी पर लाया जाए। गांवों में इंटरनेट पहुंचाना आज भी उतना ही जरूरी है, जितना 2018 में था – फर्क सिर्फ इतना है कि अब भरोसा टूट चुका है।

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