रायपुर/नई दिल्ली। Supreme Court Ultimatum : सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को कड़ा अल्टीमेटम देते हुए निर्देश दिया है कि वह राज्य में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन प्राधिकरण का गठन दो माह के भीतर सुनिश्चित करे। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि तय समयसीमा में यह कार्य पूरा नहीं हुआ, तो राज्य सरकार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
Supreme Court Ultimatum : यह आदेश सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले के बाबूलाल द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से शिकायत की थी कि प्राधिकरण के अभाव में किसानों और भूस्वामियों को मुआवजा और ब्याज से संबंधित न्याय नहीं मिल पा रहा है। अदालत को यह भी बताया गया कि सैकड़ों मामले वर्षों से लंबित हैं, जिससे प्रभावित लोगों को लगातार परेशानी उठानी पड़ रही है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने राज्य सरकार के उस दावे को खारिज कर दिया, जिसमें 28 अप्रैल 2025 से गठन प्रक्रिया शुरू होने की बात कही गई थी। कोर्ट ने इसे ‘अपर्याप्त और गैर-जिम्मेदाराना’ करार देते हुए मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदारी लेने को कहा है।
Supreme Court Ultimatum
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस आदेश का किसी भी प्रभावित व्यक्ति के मुआवजा और ब्याज पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा। उनके वित्तीय और संवैधानिक अधिकार पूर्णतः सुरक्षित रहेंगे। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 15 सितंबर 2025 तय की है, जिसमें प्राधिकरण गठन की प्रगति रिपोर्ट पेश करनी होगी।
गौरतलब है कि इससे पहले बाबूलाल ने इसी मुद्दे पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी, जिसे यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि यह जनहित का मामला नहीं है। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ ही याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
यह आदेश उन हजारों किसानों और ज़मीन मालिकों के लिए बड़ी उम्मीद बनकर सामने आया है, जो वर्षों से मुआवजे और पुनर्वास के लिए न्याय की बाट जोह रहे थे। अब सरकार के पास समय सीमित है, और उसे जवाबदेह बनना ही होगा।