What is Waqf: हर समाज की नींव कुछ ऐसी व्यवस्थाओं पर टिकी होती है, जो उस समाज की आत्मा को दर्शाती हैं—और इस्लामी परंपरा में वक्फ (Waqf) ऐसी ही एक व्यवस्था है, जो न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी है, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों के लिए सहारा बनकर सामने आती है। भारत में वक्फ की यात्रा कोई अचानक शुरू हुई परंपरा नहीं, बल्कि सदियों पुरानी एक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था है, जिसकी जड़ें इतिहास, धर्म और राजनीति में गहराई से समाई हुई हैं।
‘वकुफा’ से ‘वक्फ’ तक की यात्रा
अरबी भाषा के शब्द ‘वकुफा’ से निकला वक्फ, जिसका अर्थ है—रोकना, ठहराना या संरक्षित करना। इसका मूल उद्देश्य एक व्यक्ति द्वारा अपनी संपत्ति को जनकल्याण के लिए समर्पित करना है। वक्फ न तो बेचा जा सकता है, न विरासत में दिया जा सकता है और न ही उपहार स्वरूप किसी को सौंपा जा सकता है। यह एक स्थायी सामाजिक व्यवस्था है, जिसमें संपत्ति ईश्वर के नाम पर समाज की सेवा के लिए सुरक्षित कर दी जाती है।
धार्मिक प्रेरणा: पैगंबर से खलीफा तक
वक्फ की सबसे पुरानी घटनाओं में से एक खलीफा उमर द्वारा खैबर की भूमि को वक्फ करना मानी जाती है, जब पैगंबर मोहम्मद (स.अ.) ने उन्हें सलाह दी कि वह इस संपत्ति को रोक दें और इससे होने वाला लाभ लोगों की सेवा में लगाएं। इसी विचारधारा ने आगे चलकर इस्लामिक समाज में वक्फ की नींव रखी।
भारत में वक्फ की आमद: अरब व्यापारियों से दिल्ली सल्तनत तक
भारत में वक्फ की शुरुआत इस्लाम के आगमन के साथ मानी जाती है, खासकर 7वीं सदी में दक्षिण भारत के मालाबार तट पर अरब व्यापारियों के कदम पड़ते ही इस संस्था ने जमीन पकड़नी शुरू कर दी। लेकिन इसे संगठित रूप में लाने का प्रयास दिल्ली सल्तनत के समय शुरू हुआ।
मोहम्मद गोरी द्वारा जामा मस्जिद, मुल्तान के लिए दो गांव दान करने की घटना को भारत में वक्फ की शुरुआत का पहला उदाहरण माना जाता है। इसके बाद कुतुबुद्दीन ऐबक और इल्तुतमिश जैसे शासकों ने मस्जिदों और मदरसों के लिए संपत्तियां समर्पित कर इस परंपरा को आगे बढ़ाया।
मुगल युग: वक्फ का विस्तार
मुगल सम्राट बाबर से लेकर अकबर तक, वक्फ संस्था को एक सुसंगठित स्वरूप मिला। अकबर ने वक्फ संपत्तियों को धर्मार्थ कार्यों के लिए अधिकृत कर इसे राज्य के स्तर पर एक स्थायी संस्था बना दिया। वक्फ अब सिर्फ धार्मिक स्थलों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि शिक्षा और समाजसेवा का भी माध्यम बना।
ब्रिटिश काल: वक्फ का विधिकरण
ब्रिटिश शासन ने इस अनौपचारिक परंपरा को कानूनी पहचान दी। 1913 में वक्फ संस्थाओं को औपचारिक स्वरूप दिया गया और 1923 में वक्फ एक्ट बना। यह व्यवस्था अब एक विधिसम्मत संस्था बन गई, जिसे बाद में 1995 में संशोधित कर वर्तमान रूप दिया गया। प्रोफेसर इरफान हबीब के अनुसार, वक्फ की परंपरा पहले से थी, लेकिन ब्रिटिशों ने इसे प्रशासनिक दृष्टिकोण से संगठित किया।
वक्फ की वर्तमान स्थिति: अवसर और चुनौतियाँ
वर्तमान में भारत में वक्फ बोर्ड, भारतीय सेना और रेलवे के बाद सबसे बड़ा ज़मींदार है। इसके अंतर्गत हजारों मस्जिदें, दरगाहें, मदरसे, कब्रिस्तान और सामाजिक संस्थान आते हैं। लेकिन, इसके साथ ही यह संस्था आज आरोपों, दुरुपयोग और प्रशासनिक लापरवाही का भी शिकार है।
मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली जैसे विद्वान मानते हैं कि वक्फ एक धार्मिक फर्ज की तरह अहम है, लेकिन इसके साथ गलतफहमियां भी जुड़ गई हैं। ‘कब्जे’ जैसे आरोप या सरकारी हस्तक्षेप की आशंकाएं इस संस्था की आत्मा को चोट पहुंचाती हैं।
संशोधन और भविष्य: किस ओर जा रहा है वक्फ?
हाल ही में केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा वक्फ संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया गया है। इसमें 14 संशोधनों को संसदीय समिति ने स्वीकार किया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि ये संशोधन पारदर्शिता और जन-हित के लक्ष्य को कितना पूरा कर पाएंगे।
एक ऐतिहासिक संस्था की आज की कहानी
वक्फ न तो सिर्फ एक धार्मिक व्यवस्था है, न ही सिर्फ एक कानूनी संस्था—यह एक सामाजिक उत्तरदायित्व है। यह एक ऐसी संपत्ति है जिसे समाज के लिए संरक्षित किया जाता है। समय के साथ इसकी आत्मा को बचाए रखना और इसमें सुधार लाना हम सबकी साझा जिम्मेदारी है। जैसे किसी बायोपिक में नायक की संघर्ष-यात्रा को दर्शाया जाता है, वैसे ही वक्फ की यह गाथा भारत में एक ऐसी संस्था की है, जो समय, सत्ता और समाज की कसौटियों से गुजरते हुए आज भी अपने मूल उद्देश्य को खोज रही है।