Sunday, June 8, 2025
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Raipur Big News : सरकारी ज़मीन पर प्राइवेट कब्ज़ा! खनूजा का 25 करोड़ का स्कैम बेनकाब…

रायपुर। भारतमाला मुआवजा घोटाले में पहले से जेल में बंद हरमीत सिंह खनूजा की धोखाधड़ी का एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। उच्च स्तरीय जांच में सामने आया है कि खनूजा ने रायपुर के पंडरीतराई इलाके में ग्राम सेवा समिति की लगभग 4.12 एकड़ भूमि को फर्जी दस्तावेजों के सहारे अपने नाम दर्ज करा लिया। इस ज़मीन की बाज़ार कीमत 25 करोड़ रुपए से अधिक आंकी गई है।

कैसे रचा गया घोटाला?

जांच रिपोर्ट के अनुसार, खनूजा ने एक कथित 60 साल पुराना विक्रय पत्र और फर्जी हक त्याग पत्र बनवाकर 15 फरवरी 2023 को नामांतरण आदेश प्राप्त कर लिया। यह आदेश तत्कालीन तहसीलदार मनीष देव साहू द्वारा जारी किया गया था, जिसके तहत खसरा नंबर 299/1क की ज़मीन 10 लोगों के नाम दर्ज की गई।

हालांकि, जांच में यह स्पष्ट हो गया कि जिनके नाम पर पुरानी रजिस्ट्री दिखाई गई थी, वे कभी भूमि के स्वामी थे ही नहीं, और न ही उनका नाम कभी राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज हुआ था।

रिकॉर्ड में की गई हेरफेर

तत्कालीन पटवारी विरेंद्र कुमार झा पर आरोप है कि उसने मिलकर रिकॉर्ड में फर्जी प्लॉट नंबर (1/2) बनाकर 12 लोगों के नाम दर्ज किए, फिर खनूजा द्वारा तैयार किए गए फर्जी हक त्याग पत्र के आधार पर 11 लोगों के नाम राजस्व रिकॉर्ड से विलोपित कर दिए।

इसके बाद खनूजा ने बचे हुए एक खातेदार को 20% हिस्सेदार दिखाकर 80% ज़मीन अपने और अपने भाइयों के नाम करवा ली।

अब होगी कार्रवाई

ग्राम सेवा समिति के मंत्री अजय तिवारी द्वारा की गई शिकायत पर संभागायुक्त महादेव कावरे ने उपायुक्त ज्योति सिंह की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित की थी। समिति की रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि तहसीलदार और पटवारी का आचरण पूरी तरह विधि विरुद्ध है।

अब इस मामले में:

  • तहसीलदार मनीष देव साहू को कारण बताओ नोटिस देने की सिफारिश की गई है।

  • पटवारी विरेंद्र कुमार झा के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई की अनुशंसा की गई है।

प्रशासन के लिए एक और चेतावनी

यह मामला छत्तीसगढ़ में सरकारी ज़मीनों की सुरक्षा और प्रशासनिक पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। एक तरफ जहां आरोपी पहले से ही एक बड़े मुआवजा घोटाले में जेल में है, वहीं दूसरी तरफ ज़मीन कब्जाने की यह नई चाल राज्य सरकार के लिए एक सतर्कता का संकेत हो सकता है।

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हालांकि, जांच में यह स्पष्ट हो गया कि जिनके नाम पर पुरानी रजिस्ट्री दिखाई गई थी, वे कभी भूमि के स्वामी थे ही नहीं, और न ही उनका नाम कभी राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज हुआ था।

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