बिलासपुर। Chhattisgarh High Court : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हत्या के एक मामले में 6 वर्षीय बच्ची की गवाही को पूर्ण रूप से भरोसेमंद और पर्याप्त मानते हुए आरोपियों की सजा बरकरार रखी है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि बाल गवाह, जिसने घटना अपनी आंखों से देखी हो, उसकी गवाही को पुष्टिकरण की आवश्यकता नहीं होती। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उम्रकैद के फैसले को सही ठहराते हुए अपील खारिज कर दी है।
Chhattisgarh High Court : यह मामला कांकेर जिले का है, जहां 13 दिसंबर 2016 को राज सिंह पटेल ने गांव के एक युवक मानसाय की कथित आत्महत्या की सूचना पुलिस को दी थी। लेकिन कुछ हफ्तों बाद, मृतक की 6 साल की बेटी ने चौंकाने वाला खुलासा किया। पुलिस को दिए बयान में उसने बताया कि आरोपी पंकू ने उसके पिता के पेट में लात मारी और उसकी मां सगोर बाई ने अपने दुपट्टे से गला घोंट दिया। फिर दोनों ने शव को देवता घर में लटकाकर आत्महत्या का रूप दे दिया।
बच्ची की गवाही के आधार पर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज किया और आरोपियों को गिरफ्तार किया। ट्रायल कोर्ट ने दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। लेकिन आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील दायर की, जिसमें यह कहा गया कि बच्ची का बयान देरी से लिया गया और उसकी गवाही अविश्वसनीय है।
मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच में हुई। अदालत ने कहा कि बच्ची की उम्र भले ही कम हो, लेकिन उसकी गवाही सीधी, स्पष्ट और घटना के अनुसार थी। अदालत ने यह भी माना कि निचली अदालत ने गवाही से पहले उसके मानसिक और साक्ष्य देने की योग्यता की जांच कर ली थी।
हालांकि कोर्ट ने यह छूट जरूर दी कि आरोपी सुप्रीम कोर्ट में विधिक सेवा प्राधिकरण की मदद से अपील कर सकते हैं। लेकिन यह फैसला छत्तीसगढ़ न्यायपालिका में बाल गवाहों की स्वीकार्यता के संदर्भ में एक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है।