रायपुर, छत्तीसगढ़ : CG News : छत्तीसगढ़ सरकार ने पुलिस और आम जनता के बीच संवाद को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री विजय शर्मा के निर्देश पर, अब पुलिस कार्यप्रणाली में उपयोग होने वाले कठिन उर्दू-फारसी शब्दों को हटाकर उनकी जगह सरल और प्रचलित हिंदी शब्दों का प्रयोग किया जाएगा। यह निर्णय पुलिस व्यवस्था को आमजन के लिए और अधिक सुगम बनाने की दिशा में एक बड़ी पहल है।
आमजन की सहूलियत प्राथमिकता
उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने इस पहल के पीछे का मकसद स्पष्ट करते हुए कहा कि जब कोई नागरिक किसी शिकायत या सूचना के साथ थाने पहुंचता है, तो उसे अक्सर FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट) या अन्य पुलिस दस्तावेज़ों में दर्ज भाषा समझने में परेशानी होती है। उर्दू-फारसी के शब्द आम लोगों के लिए अनजान होते हैं, जिससे वे न तो अपनी बात ठीक से समझा पाते हैं और न ही पूरी कानूनी प्रक्रिया को ठीक से समझ पाते हैं। उन्होंने जोर दिया कि अगर पुलिस का मुख्य उद्देश्य नागरिकों की सहायता और सुरक्षा है, तो उसकी भाषा भी ऐसी होनी चाहिए जो नागरिकों की समझ में आए और उनमें विश्वास पैदा करे।
पुलिस महानिदेशक का निर्देश और शब्द सूची
उपमुख्यमंत्री के निर्देश के बाद, पुलिस महानिदेशक (DGP) द्वारा सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों (SP) को एक आधिकारिक पत्र जारी किया गया है। इस पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पुलिस की व्यवहारिक कार्यवाहियों में प्रयुक्त होने वाले पारंपरिक और कठिन शब्दों को सरल और स्पष्ट हिंदी में बदला जाए। इस बदलाव को प्रभावी बनाने के लिए, एक शब्द सूची भी तैयार की गई है। इस सूची में पुराने, कठिन शब्दों के स्थान पर उपयोग किए जा सकने वाले सरल हिंदी विकल्प सुझाए गए हैं।
वास्तविक कार्यान्वयन पर जोर
पत्र में यह भी निर्देशित किया गया है कि सभी अधीनस्थ अधिकारियों को इस महत्वपूर्ण बदलाव के बारे में अवगत कराया जाए। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाए कि यह आदेश केवल कागजी कार्यवाही तक सीमित न रहे, बल्कि इसका वास्तविक कार्यान्वयन प्रदेश की हर पुलिस चौकी, थाने और कार्यालय में दिखाई दे।
इस पहल से छत्तीसगढ़ पुलिस अब केवल कानून का पालन कराने वाली संस्था ही नहीं, बल्कि जनसंवाद का एक प्रभावी माध्यम भी बनेगी। भाषा के इस सरलीकरण से शिकायतकर्ता को अपनी बात स्पष्ट रूप से कहने, सुनने और समझने में सुविधा होगी। FIR जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रियाएँ, जो अब तक केवल अधिवक्ताओं या पुलिस कर्मियों तक सीमित समझी जाती थीं, वे अब आम नागरिकों के लिए भी बोधगम्य हो सकेंगी, जिससे न्याय प्रणाली में उनका भरोसा बढ़ेगा।