अयोध्या। 29 मई 2025 | निशानेबाज़ विशेष : सूरज की पहली किरण जब अयोध्या की पावन धरती पर पड़ती है, तभी प्रभु श्री रामलला का दिव्य दरबार भक्तों के लिए खुल जाता है। ब्रह्ममुहूर्त के बाद जैसे ही मंदिर में आरती की गूंज गूंजती है, संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी श्रीराम एक नई छवि में भक्तों को दर्शन देते हैं।
यहाँ श्रृंगार कोई साधारण क्रिया नहीं, बल्कि भक्ति और परंपरा का मिलन है। हर दिन, हर ऋतु और हर अवसर पर रामलला का रूप बदला जाता है — गर्मियों की सुबह उन्हें हल्के सूती परिधान पहनाए जाते हैं, तो सर्दियों में उनका श्रृंगार ऊनी वस्त्रों, रेशमी चादरों और हाथ से बुने स्वेटरों से होता है।
विशेष बात यह है कि श्रीराम के लिए जो फूलों की मालाएं सजाई जाती हैं, वे राजधानी दिल्ली से विशेष रूप से मंगाई जाती हैं। प्रत्येक माला में सुगंध और श्रद्धा का ऐसा समावेश होता है कि दर्शक उस पावन सुगंध में रम जाते हैं।
सुबह 6:30 बजे होती है पहली आरती, जिसमें भगवान को जाग्रत कर उनका अभिषेक, स्नान, लेप और वस्त्रविन्यास की परंपरा निभाई जाती है। दोपहर को 12 बजे भोग आरती होती है और संध्या आरती साढ़े सात बजे। रात्रि में 8:30 बजे रामलला विश्राम को जाते हैं और दरबार भक्तों के लिए बंद हो जाता है।
रामलला के दर्शन का समय सीमित ज़रूर है, पर उनकी छवि भक्तों के मन में असीम रूप में समाई रहती है। हर दिन बदलते वस्त्रों और श्रृंगार के साथ अयोध्या का यह दिव्य मंदिर भक्ति और परंपरा का जीवंत प्रतीक बन चुका है।