इंदौर | एक बार फिर लंबे समय बाद डिजिटल अरेस्ट का गंभीर मामला सामने आया है। इस बार शिकार बनीं एक रिटायर्ड प्रिंसिपल बुजुर्ग महिला, जिन्हें करीब 36 घंटे तक ठगों ने वीडियो कॉल पर बंधक बना रखा। ठगी की यह कोशिश तो बेहद शातिर थी
लेकिन महिला की सतर्कता और बैंक मैनेजर की समझदारी ने एक करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम को ठगों के हाथों जाने से बचा लिया। अब पुलिस इस मामले को डिजिटल फ्रॉड का क्लासिक केस मानते हुए लोगों को लगातार जागरूक कर रही है।घटना इंदौर के वायएन रोड स्थित गांधी नगर इलाके की है।
यहां रहने वाली नंदिनी चिपलूनकर, जो कि एक सेंट्रल स्कूल की रिटायर्ड प्रिंसिपल हैं, उन्हें एक फर्जी कॉल आया। कॉल करने वाले ने खुद को एक एजेंसी का अधिकारी बताया और कहा कि उनके नाम पर एक सिम कार्ड जारी हुआ है, जिससे अवैध गतिविधियां हो रही हैं।
इसके बाद महिला को मुंबई के कोलावा थाने के कथित डीएसपी से वीडियो कॉल करवाई गई, और कहा गया कि उन पर मनी लॉन्ड्रिंग के तहत 267 शिकायतें हैं। उन्हें दो घंटे में थाने पहुंचने के लिए दबाव बनाया गया। महिला पर लगातार मानसिक दबाव बनाया गया
और उन्हें 36 घंटे तक वीडियो कॉल पर रखा गया, यानी डिजिटल अरेस्ट में डाल दिया गया। इसी दौरान उनसे करोड़ों रुपये की मांग की गई। महिला जब बैंक पहुंची तो 50 लाख की सेविंग और 52 लाख की एफडी निकालने की प्रक्रिया शुरू की, लेकिन बैंक मैनेजर को शक हुआ।
क्राइम ब्रांच को सूचना दी गई। एडिशनल डीसीपी राजेश दंडोतिया के नेतृत्व में पुलिस टीम ने मौके पर पहुंचकर महिला को विश्वास में लिया और कॉल बंद करवाई। महिला के फोन चालू होते ही फिर से ठगों के कॉल आने लगे, जिससे पूरा
मामला स्पष्ट हुआ। क्राइम ब्रांच की सक्रियता और महिला की सजगता के चलते एक करोड़ से अधिक की रकम ठगी से बच गई। महिला को समझाइश दी गई और एडिशनल डीसीपी ने घर पहुंचकर उन्हें पुस्तक भेंट की और धन्यवाद भी लिया।