नई दिल्ली। ICICI बैंक लोन घोटाला : देश के कॉरपोरेट इतिहास का एक बड़ा काला अध्याय – ICICI बैंक की पूर्व CEO चंदा कोचर अब कानूनी रूप से दोषी पाई गई हैं। 300 करोड़ के लोन को मंजूरी देने के बदले 64 करोड़ की कथित रिश्वत लेने का यह मामला सिर्फ एक बैंकिंग अनियमितता नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार की एक चौंकाने वाली स्क्रिप्ट बन चुका है, जिसमें चंदा और उनके पति दीपक कोचर की मुख्य भूमिका उजागर हुई है।
ICICI बैंक लोन घोटाला : फैसला एक अपीलेट ट्रिब्यूनल से आया है, जिसने साफ तौर पर कहा है कि ICICI बैंक द्वारा वीडियोकॉन ग्रुप को अगस्त 2009 में दिए गए ₹300 करोड़ के लोन के ठीक अगले दिन वीडियोकॉन की एक इकाई SEPL ने दीपक कोचर की कंपनी न्यू पावर रिन्यूएबल्स (NRPL) को ₹64 करोड़ ट्रांसफर किए। ट्रिब्यूनल ने इस लेनदेन को “क्विड प्रो क्वो” यानी रिश्वत का क्लासिक उदाहरण करार दिया – लोन के बदले में लाभ।
ED की जांच और ट्रिब्यूनल के निष्कर्षों के अनुसार, चंदा कोचर ने न केवल ICICI बैंक की आंतरिक नीतियों का उल्लंघन किया, बल्कि अपने पति की कंपनी और वीडियोकॉन के बीच के कारोबारी रिश्तों को छिपाकर ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ के सभी नियमों को तोड़ा।
ट्रिब्यूनल ने कहा कि इस कर्ज-रिश्वत लेनदेन की पूरी टाइमलाइन सटीक और प्रमाणित है – जिससे यह साफ होता है कि यह कोई ‘कॉइनसिडेंस’ नहीं बल्कि योजनाबद्ध भ्रष्टाचार था। चंदा और दीपक कोचर इस वक्त ज़मानत पर बाहर हैं, लेकिन उनके खिलाफ मुकदमा सक्रिय है।
खास बात यह है कि ट्रिब्यूनल ने उस पुराने आदेश को भी खारिज कर दिया जिसमें कोचर दंपत्ति की 78 करोड़ की संपत्ति को रिलीज कर दिया गया था। ट्रिब्यूनल ने कहा कि उस फैसले में जरूरी सबूतों को नजरअंदाज कर दिया गया था और ED के पास पर्याप्त दस्तावेज़ी प्रमाण थे जो कोचर दंपत्ति की भ्रष्ट मंशा को उजागर करते हैं।
यह मामला अब सिर्फ बैंकिंग की गरिमा नहीं, बल्कि नैतिकता और पारदर्शिता पर भी सवाल खड़ा करता है। क्या देश की बड़ी कॉरपोरेट संस्थाओं में शीर्ष पर बैठे लोग जवाबदेह होंगे? इस फैसले ने एक नई बहस को जन्म दिया है। अगर आप चाहें तो मैं इस खबर के लिए टैग्स, सोशल मीडिया कैप्शन और वीडियो स्क्रिप्ट भी तैयार कर सकता हूँ।