kargil War : नई दिल्ली| करगिल युद्ध से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर गुप्त वार्ता हुई थी। यह चौंकाने वाला खुलासा वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक चौधरी की नई किताब “The Believer’s Dilemma: Vajpayee and the Hindu Right’s Path to Power” में किया गया है।
किताब के अनुसार, वाजपेयी की ऐतिहासिक 1999 की लाहौर यात्रा और घोषणापत्र के बाद दिल्ली के एक होटल में पांच दिन तक गुप्त बातचीत चली। इस वार्ता में पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक नियाज नाइक और भारत की ओर से आरके मिश्रा शामिल थे। इस दौरान कश्मीर समस्या के समाधान के लिए ‘चिनाब फॉर्मूला’ जैसे संवेदनशील प्रस्ताव पर चर्चा हुई।
क्या था चिनाब फॉर्मूला?
इस फॉर्मूले के तहत चिनाब नदी को आधार मानकर जम्मू-कश्मीर का सांप्रदायिक आधार पर विभाजन प्रस्तावित था। पश्चिमी मुस्लिम बहुल इलाकों को पाकिस्तान को सौंपने और पूर्वी हिंदू बहुल क्षेत्रों को भारत में बनाए रखने की बात सामने आई। यह प्रस्ताव वाजपेयी के कहने पर ‘नई सोच’ के तहत सामने आया था।
अन्य प्रस्ताव और उनका खारिज होना
- किताब में बताया गया है कि वार्ता के दौरान अन्य कई विकल्पों पर भी विचार हुआ, जिनमें शामिल थे:
- नियंत्रण रेखा को स्थायी अंतरराष्ट्रीय सीमा मानना (पाकिस्तान ने खारिज किया),
- कश्मीर को स्वायत्तता देना (पाकिस्तान ने खारिज किया),
- कश्मीर को स्वतंत्र राष्ट्र बनाना (भारत ने खारिज किया),
- क्षेत्रवार जनमत संग्रह कराना (भारत ने खारिज किया)।
शरीफ को भेजा गया था विशेष संदेश
1 अप्रैल 1999 को इस्लामाबाद रवाना होने से पहले नाइक ने वाजपेयी से मुलाकात की थी। इस दौरान वाजपेयी ने नाइक के हाथों नवाज शरीफ को यह संदेश भेजा कि गर्मियों में घुसपैठ और सीमा पार गोलीबारी रोकी जाए। लेकिन इसके ठीक एक महीने बाद मई की शुरुआत में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने नियंत्रण रेखा के पास पाकिस्तान की संदिग्ध गतिविधियों में तेजी देखी।
करगिल से नाराज थे वाजपेयी
स्थिति बिगड़ने पर प्रधानमंत्री वाजपेयी ने 17 मई को मिश्रा को इस्लामाबाद भेजा। मिश्रा ने शरीफ से सीधा सवाल किया—क्या उन्होंने करगिल ऑपरेशन की जानकारी होते हुए भी लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे? किताब के अनुसार, उसी दिन शरीफ को करगिल ऑपरेशन की अधूरी जानकारी दी गई, वह भी बिना किसी नक्शे के।
राजनीतिक हलकों में हलचल
किताब में किए गए इन खुलासों ने भारतीय राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं, वहीं बीजेपी ने इस पर तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर संसद से लेकर सड़क तक सियासी तापमान बढ़ सकता है।