IAS Vs Judge controversy : नई दिल्ली/अजमेर | प्रसिद्ध UPSC कोचिंग संस्थान दृष्टि IAS के संस्थापक डॉ. विकास दिव्यकीर्ति एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं। इस बार मामला सीधे देश की न्यायपालिका से जुड़ा है। हाल ही में वायरल हुए एक वीडियो में दिव्यकीर्ति ने “IAS बनाम जज – कौन ज्यादा पावरफुल?” विषय पर चर्चा करते हुए जजों की शक्तियों को सीमित बताया और हाईकोर्ट की कार्यशैली पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी की, जिसके बाद अजमेर कोर्ट में उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज किया गया है।
क्या है पूरा मामला?
विवादित वीडियो में डॉ. दिव्यकीर्ति अपने छात्रों को IAS और जज के बीच पावर के अंतर को समझा रहे थे। इस दौरान उन्होंने अदालतों और जजों को लेकर कथित रूप से अपमानजनक, तिरस्कारपूर्ण और व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग किया। यही बात राजस्थान के वकील कमलेश मंडोलिया को नागवार गुज़री और उन्होंने अजमेर कोर्ट में धारा 499/500 (IPC) के तहत मानहानि की याचिका दायर कर दी।
कोर्ट का रुख सख्त
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए अजमेर कोर्ट ने 40 पन्नों का विस्तृत आदेश जारी किया है। आदेश में डॉ. दिव्यकीर्ति को 22 जुलाई 2025 तक कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया गया है। अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि “न्यायपालिका की गरिमा और सम्मान सर्वोपरि है, और इस प्रकार की सार्वजनिक टिप्पणियाँ लोकतंत्र के तीसरे स्तंभ को कमजोर करने वाली मानी जाएंगी।”
मुख्य बिंदु | केस का सार
- वीडियो शीर्षक: IAS बनाम जज – कौन ज्यादा पावरफुल?
- आरोप: न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने वाली टिप्पणी
- वादी: वकील कमलेश मंडोलिया
- स्थान: अजमेर जिला न्यायालय, राजस्थान
- आदेश: 22 जुलाई तक कोर्ट में हाजिरी का निर्देश
- कानून: मानहानि की धाराएं IPC 499 और 500
विकास दिव्यकीर्ति: कौन हैं वो?
डॉ. विकास दिव्यकीर्ति UPSC परीक्षार्थियों के बीच एक लोकप्रिय शिक्षक, लेखक और मोटिवेटर हैं।
- जन्म: 26 दिसंबर, 1973 (हरियाणा)
- UPSC चयन: 1996 (भारतीय सूचना सेवा, गृह मंत्रालय)
- संस्थान: दृष्टि IAS, जिसकी यूट्यूब पर 37 लाख से अधिक सब्सक्राइबर्स हैं
- प्रसिद्धि: हिंदी माध्यम में सिविल सेवा की तैयारी कराने वाले सबसे प्रभावशाली चेहरों में एक
इस विवाद पर देशभर में क्या मचा है शोर…
वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर #DivyakirtiControversy, #IasVsJudge जैसे ट्रेंड्स टॉप पर रहे। कई लोगों ने जहां दिव्यकीर्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन किया, वहीं बड़ी संख्या में वकीलों, कानून छात्रों और न्यायिक अधिकारियों ने इसे एक सुनियोजित संस्थागत अपमान बताया।