Marriage Hoax : बिलासपुर | छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में साफ किया है कि जब तक यह साबित न हो जाए कि कोई मूल दस्तावेज़ गुम हो चुका है या जानबूझकर छिपाया गया है, तब तक उसकी फोटोकॉपी को सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। ये कड़ी टिप्पणी कोर्ट ने उस केस की सुनवाई के दौरान दी, जिसमें एक युवक पर शादी का झांसा देकर दुष्कर्म और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था।
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क्या है मामला – सरगुजा जिले की एक महिला ने विजय उरांव नामक युवक पर आरोप लगाया था कि उसने शादी का वादा कर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए और फिर इनकार कर दिया। मामला दर्ज हुआ और आरोपी के खिलाफ IPC की धारा 376 और 417 के तहत केस चला। महिला ने कोर्ट में एक विवाह एग्रीमेंट की फोटोकॉपी पेश की। लेकिन हैरानी की बात ये रही कि यह दस्तावेज़ न जांच में पेश हुआ, न FIR या बयान में इसका जिक्र था, न ही चार्जशीट का हिस्सा था। इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया, जिस पर आरोपी पक्ष ने कड़ी आपत्ति जताई। हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 और 66 का हवाला देते हुए साफ कहा: “द्वितीयक साक्ष्य (जैसे फोटोकॉपी) तभी मान्य होता है जब मूल दस्तावेज पेश नहीं किया जा सके और उसके ना होने का ठोस कारण हो।”
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कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई आवेदन या नोटिस नहीं दिया गया था, दस्तावेज की फोटोकॉपी को ट्रायल के दौरान एकदम अचानक पेश करना गलत है, इससे अभियुक्त के बचाव के अधिकार का हनन होता है।नतीजा: दस्तावेज़ खारिज, केस में नया मोड़ हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को विधिसम्मत नहीं माना, जिसमें बिना जांच में पेश हुए दस्तावेज को स्वीकार किया गया था। इससे केस की दिशा अब पूरी तरह बदल सकती है।