Rawatpura University Controversy : रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित रावतपुरा सरकार विश्वविद्यालय के लगभग 5,000 पैरामेडिकल विद्यार्थियों का भविष्य गहरे संकट में है। बीएमएलटी, डीएमएलटी, डायलिसिस और ऑप्टोमेट्री जैसे तकनीकी पाठ्यक्रमों में पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राएं अब रजिस्ट्रेशन की लड़ाई में फंस गए हैं। हैरानी की बात यह है कि छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद भी इन छात्रों का नामांकन पैरामेडिकल काउंसिल में नहीं हो रहा है। हाई कोर्ट ने हाल ही में 59 छात्रों के पक्ष में आदेश देते हुए उनका रजिस्ट्रेशन सुनिश्चित करने को कहा था। लेकिन अधिकारियों का कहना है कि प्रत्येक छात्र को अलग-अलग आदेश लाना होगा, जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन इसे सभी छात्रों के लिए समान रूप से लागू मान रहा है।
रजिस्ट्रेशन न होने से नौकरी, इंटर्नशिप और भविष्य अधर में
रजिस्ट्रेशन नहीं होने के कारण न तो छात्रों को नौकरी मिल पा रही है, न ही वे किसी तरह की इंटर्नशिप या उच्च शिक्षा के लिए पात्र हैं। इससे छात्रों में भारी नाराजगी है। छात्रों ने दिया ‘श्रीफल’, दी चेतावनी पिछले मंगलवार को नाराज छात्रों ने छत्तीसगढ़ पैरामेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार का घेराव कर विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने ‘श्रीफल देकर विरोध’ जताया और चेतावनी दी कि यदि जल्द समाधान नहीं हुआ, तो वे कलेक्ट्रेट का घेराव करेंगे।
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स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि इन कोर्सों से उनका कोई लेना-देना नहीं है। चिकित्सा शिक्षा विभाग के संचालक डॉ. यूएस पैकरा ने साफ कहा कि यह जिम्मेदारी पैरामेडिकल काउंसिल की है। वहीं आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. पीके पात्रा ने भी इन सर्टिफिकेट कोर्सों को मान्यता देने से इनकार कर दिया है।
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रावतपुरा यूनिवर्सिटी के सीपीआरओ राजेश तिवारी ने कहा – “हम तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना चाहते हैं। हाई कोर्ट का आदेश स्पष्ट है, लेकिन इसके बावजूद छात्रों का रजिस्ट्रेशन नहीं किया जा रहा। स्वास्थ्य विभाग को इस मामले में हस्तक्षेप कर छात्रों का भविष्य बचाना चाहिए।”
सवाल उठते हैं:
- जब राज्य सरकार ने 2022 में इन कोर्सों की अनुमति दी थी, तो अब मान्यता को लेकर विवाद क्यों?
- हजारों छात्रों को बिना रजिस्ट्रेशन के क्यों छोड़ दिया गया?
- कोर्ट के निर्देश के बाद भी कार्यवाही में देरी क्यों?
इस पूरे प्रकरण में छात्रों का कीमती समय और भविष्य दांव पर लगा हुआ है। जरूरत है कि सरकार, स्वास्थ्य विभाग और काउंसिल तत्काल समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाएं। वरना यह मामला सिर्फ शिक्षा व्यवस्था ही नहीं, न्याय व्यवस्था की अनदेखी का उदाहरण बन जाएगा।