CG NEWS : सूरजपुर। राज्य में जहां एक ओर सरकार आदिवासी बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा को लेकर तमाम दावे करती है, वहीं दूसरी ओर सूरजपुर जिले के प्री-मैट्रिक आदिवासी बालक छात्रावास की हालत इन दावों की सच्चाई बयान कर रही है। बारिश शुरू होते ही यह छात्रावास एक अस्थायी तालाब में तब्दील हो जाता है, जहां घुटनों तक भरा पानी बच्चों की पढ़ाई, सुरक्षा और जीवनशैली — तीनों पर खतरा बन गया है।
छात्रावास नहीं, एक जलकुंड
छात्रावास के परिसर से लेकर छात्रों के रहने और सोने वाले कमरों तक में घुटनों तक पानी भर जाता है।
हर दिन छात्र इन हालातों से जूझते हैं — टपकती छतों, फिसलन भरे फर्श और गंदे पानी से भरे गलियारों से होकर आना-जाना उनकी मजबूरी बन चुका है।
प्रशासन तक पहुंची शिकायतें, लेकिन कार्रवाई शून्य
छात्रों ने बार-बार प्रशासन से शिकायत की है कि छात्रावास परिसर में जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है, लेकिन अब तक कोई समाधान नहीं निकल पाया। न छत की मरम्मत हुई, न दीवारें ठीक की गईं और न ही परिसर को जलभराव मुक्त करने के प्रयास किए गए।
छात्रावास की हालत — जर्जर इमारत, रिसती छतें, फटी दीवारें
छात्रावास जिला मुख्यालय के बीचों-बीच स्थित है, लेकिन बावजूद इसके इसकी हालत दुर्भाग्यपूर्ण और उपेक्षित बनी हुई है।
छतों से टपकता पानी, फटी दीवारें और जर्जर भवन ने बच्चों की जिंदगी को खतरे में डाल दिया है। छात्रों को गंदे पानी पर चलकर दैनिक कार्य करने पड़ते हैं और डर के माहौल में रहना उनकी मजबूरी बन गई है।