BRAHMAPUTRA : नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच भले ही सीमा विवाद सुलझाने की बातचीत जारी हो, लेकिन चीन ने अब एक नई रणनीतिक चाल चलते हुए तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी (यारलुंग जांगबो) पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट शुरू कर दिया है। यह डैम अरुणाचल प्रदेश की सीमा से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर बन रहा है। परियोजना की लागत करीब 168 अरब अमेरिकी डॉलर बताई जा रही है और इसे चीन का ‘मेगा वॉटर प्रोजेक्ट’ कहा जा रहा है। डैम का निर्माण 20 जुलाई 2025 को शुरू हुआ, जिसमें 5 पनबिजली स्टेशन शामिल हैं। यह प्रोजेक्ट सालाना 300 अरब किलोवाट बिजली पैदा करेगा, जो पूरे भारत की एक-चौथाई आबादी की बिजली ज़रूरतों के बराबर है।
भारत को क्यों है चिंता…
विशेषज्ञों का मानना है कि यह डैम केवल ऊर्जा उत्पादन के लिए नहीं, बल्कि रणनीतिक उद्देश्यों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इस क्षेत्र में डैम का नियंत्रण होने से चीन भविष्य में भारत के सीमावर्ती इलाकों में पानी की आपूर्ति को हथियार बना सकता है। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इस प्रोजेक्ट को “वॉटर बम” की संज्ञा दी है और कहा है कि “इस डैम से अगर चीन पानी छोड़ता है या रोकता है, तो भारत के कई पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ जैसी आपदा आ सकती है।”
पर्यावरणीय और भूगर्भीय खतरे
यह इलाका उच्च भूकंपीय जोखिम क्षेत्र में आता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के भारी-भरकम डैम प्रोजेक्ट से भूस्खलन, भूकंप और अन्य पर्यावरणीय जोखिम बढ़ सकते हैं। अगर किसी भी स्थिति में डैम को नुकसान होता है, तो उसका असर न केवल भारत, बल्कि बांग्लादेश तक भी विनाशकारी होगा।
भारत की रणनीतिक चुनौती
इस प्रोजेक्ट से साफ हो गया है कि चीन अब केवल सीमा पर ही नहीं, बल्कि “पानी” के ज़रिए भी दबाव बनाने की नीति अपना रहा है। भारत के पास इस नदी से जुड़ा कोई जल-संधि समझौता नहीं है, जिससे स्थिति और भी जटिल हो जाती है। विदेश मंत्रालय ने इस मामले पर फिलहाल कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन रक्षा विशेषज्ञों और सामरिक मामलों के जानकारों का मानना है कि भारत को इस विषय पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कूटनीतिक दबाव बनाना चाहिए।