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Homosexual relationships : ग्वालियर फैमिली कोर्ट में अनोखा मामला-पत्नी से तलाक लेकर पति बनेगा ट्रांसजेंडर, समलैंगिक रिश्ते में जाने की तैयारी

Homosexual relationships : भूपेन्द्र भदौरिया/ग्वालियर, मध्यप्रदेश। ग्वालियर की फैमिली कोर्ट में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। एक युवक ने अपनी पत्नी से आपसी सहमति से तलाक की अर्जी दी है, लेकिन तलाक का कारण बेहद असामान्य और चर्चा का विषय बन गया है। दरअसल, तलाक के बाद पति अपना लिंग परिवर्तन करवाकर ट्रांसजेंडर महिला बनना चाहता है और समलैंगिक संबंधों में जीवन व्यतीत करने की योजना बना चुका है।

विवाह, विवाद और अलगाव

यह मामला राजस्थान के टोंक जिले के रहने वाले एक युवक से जुड़ा है, जिसने 21 नवंबर 2019 को ग्वालियर निवासी युवती से शादी की थी। विवाह ग्वालियर में ही संपन्न हुआ था। शुरुआती दिनों में पति-पत्नी के बीच आपसी मतभेद उभरने लगे। इसी बीच 2 नवंबर 2021 को दंपत्ति को एक बेटा भी हुआ, लेकिन पारिवारिक तनाव इतना बढ़ गया कि पत्नी को पति का घर छोड़कर मायके में आकर रहना पड़ा। बताया गया कि 31 दिसंबर 2023 से पत्नी अपने बेटे के साथ पति से पूरी तरह अलग रह रही है। इन वर्षों में दोनों के रिश्ते में कोई सुधार नहीं आया, और अब उन्होंने आपसी सहमति से तलाक लेने का फैसला किया है।

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तलाक की शर्तें और ट्रांसजेंडर बनने की घोषणा

दोनों पक्षों ने सहमति पत्र भी फैमिली कोर्ट में रजिस्टर्ड कराया है। इसमें पति ने पत्नी और बेटे को 3 लाख रुपये की एकमुश्त राशि देने, साथ ही विवाह के समय दिया गया सारा सामान और जेवरात लौटाने की बात कही है।
यह तलाक आपसी सहमति से फैमिली कोर्ट (कुटुंब न्यायालय) में दायर किया गया है, जिसकी सुनवाई फिलहाल जारी है।

इस मामले को असामान्य बना देने वाली बात यह है कि पति ने खुद कोर्ट में यह बयान दिया है कि वह लिंग परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजरना चाहता है और मेडिकल ट्रीटमेंट लेकर ट्रांसजेंडर महिला बनेगा। तलाक की प्रक्रिया पूरी होते ही वह अपनी नई पहचान के साथ समलैंगिक रिश्ते में प्रवेश करेगा।

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सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण

फैमिली कोर्ट में यह मामला सिर्फ वैवाहिक विवाद का नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक पहचान की स्वीकार्यता से जुड़ा हुआ बन चुका है। भारत में ट्रांसजेंडर अधिकारों को संवैधानिक मान्यता मिलने के बाद यह संभव है कि व्यक्ति अपनी लैंगिक पहचान को कानूनी तौर पर बदल सके, लेकिन विवाह और पारिवारिक रिश्तों के बीच ऐसा मामला एक दुर्लभ उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक तलाक की प्रक्रिया पूरी नहीं होती, पति-पत्नी एक-दूसरे के वैवाहिक उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं होते। लेकिन आपसी सहमति से तलाक में यदि दोनों पक्ष राज़ी हों, तो अदालत इसमें तेजी से निर्णय ले सकती है। मानसिक स्वास्थ्य और समाजशास्त्र से जुड़े विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे मामलों में व्यक्ति को मानसिक परामर्श और भावनात्मक समर्थन की ज़रूरत होती है, क्योंकि यह न सिर्फ उसकी पहचान से जुड़ा मुद्दा है, बल्कि परिवार, बच्चे और समाज के नजरिए से भी संवेदनशील मामला बन जाता है।

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