US Dollar : वॉशिंगटन/नई दिल्ली। दुनिया की सबसे ताकतवर करेंसी अमेरिकी डॉलर की बादशाहत को अब सीधी चुनौती मिल रही है। BRICS देशों और उनके नए सहयोगियों द्वारा डॉलर की निर्भरता खत्म करने की कोशिशों ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को उग्र कर दिया है। उन्होंने दो टूक कहा है कि अगर किसी देश ने डॉलर को छोड़ने की कोशिश की, तो अमेरिका उस पर 10% से लेकर 100% तक टैरिफ ठोक सकता है और अमेरिकी बाजार से बाहर कर देगा। ट्रंप का यह बयान ऐसे वक्त पर आया है जब 2025 के शुरुआती महीनों में डॉलर की वैल्यू 1973 के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। इस गिरावट ने वैश्विक निवेशकों को भी चिंता में डाल दिया है।
डॉलर को बचाने के लिए ‘आर्थिक युद्ध’ की धमकी
ट्रंप ने मंगलवार को अपनी कैबिनेट बैठक में कहा,
“डॉलर स्टैंडर्ड को खोना मतलब एक वैश्विक युद्ध हारना है। अमेरिका अब वो देश नहीं रहेगा जो आज है।”
उन्होंने साफ किया कि BRICS या कोई और गठबंधन अगर डॉलर के समानांतर करेंसी लाने की कोशिश करेगा तो अमेरिका संरक्षणवादी कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा।
कौन दे रहा है US Dollar को चुनौती?
1. BRICS और उनके नए साथी
ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका मिलकर एक संयुक्त डिजिटल करेंसी लाने की योजना पर काम कर रहे हैं, जिसे अस्थायी रूप से “BRICS यूनिट” कहा जा रहा है। साथ ही, इंडोनेशिया, मलेशिया, अल्जीरिया, नाइजीरिया, तुर्की, उज्बेकिस्तान जैसे कई देश BRICS से जुड़ने की तैयारी में हैं और डी-डॉलराइजेशन को खुला समर्थन दे रहे हैं। ट्रंप पहले ही ब्राजील पर 50% टैरिफ लगा चुके हैं और बाकी देशों को चेतावनी दे दी है।
2. CIS देश
रूस, कजाकिस्तान, बेलारूस, अज़रबैजान जैसे देशों ने आपसी व्यापार में डॉलर की जगह लोकल करेंसी के इस्तेमाल का ऐलान कर दिया है। ये देश अमेरिका के दबाव से निकलने की कोशिश कर रहे हैं।
3. चीन और रूस
चीन ने युआन को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में आगे बढ़ाया है और रूस के साथ मिलकर डॉलर से बाहर निकलने का डिजिटल वॉलेट और पेमेंट सिस्टम बना लिया है। रूस अब रूबल-युआन में ही डील कर रहा है।
4. भारत की सतर्कता
भारत भी इस बदलाव में हिस्सेदार है। जुलाई 2022 से भारत ने 22 देशों के बैंकों को 92 विशेष रुपये वोस्ट्रो खाते (SRVA) खोलने की अनुमति दी है, जिससे इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन रुपये में हो सके। हालांकि भारत अभी BRICS की साझा करेंसी को लेकर सतर्क है, खासकर चीन की नीति पर अविश्वास को लेकर।
5. अफ्रीका और अन्य देश
अफ्रीकी देश भी अब लोकल करेंसी और डिजिटल पेमेंट सिस्टम को तरजीह दे रहे हैं, ताकि वे अमेरिकी प्रतिबंधों या डॉलर की अस्थिरता से सुरक्षित रह सकें।
रूस, ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देश तो अमेरिकी प्रतिबंधों से तंग आकर पहले ही डॉलर से बाहर निकलने के रास्ते तलाश चुके हैं।
क्या खत्म हो रही है डॉलर की बादशाहत?
विशेषज्ञों का मानना है कि डॉलर अभी भी वैश्विक रिजर्व करेंसी है, लेकिन उसकी पकड़ कमजोर हो रही है। अमेरिका की आक्रामक नीतियां और व्यापारिक नियंत्रण ने कई देशों को आर्थिक स्वतंत्रता की तरफ मोड़ दिया है। खासकर जब टेक्नोलॉजी, डिजिटल करेंसी और ब्लॉकचेन जैसी चीजें तेजी से आगे बढ़ रही हैं।
भारतीयों पर असर: महंगे होंगे सपने
ट्रंप की नीतियों का सीधा असर भारतीय स्टूडेंट्स, प्रोफेशनल्स और एक्सपोर्टर्स पर भी पड़ सकता है। अगर टैरिफ और प्रतिबंध बढ़े, तो अमेरिका में पढ़ाई और काम करना और महंगा और मुश्किल हो सकता है। डॉलर की बादशाहत पहली बार इतनी बड़ी वैश्विक चुनौती के सामने खड़ी है। ट्रंप इस खतरे को ‘आर्थिक युद्ध’ के रूप में देख रहे हैं और अमेरिका इसे रोकने के लिए कड़े फैसले लेने को तैयार है। अब देखना यह है कि BRICS और बाकी देश इस दबाव के आगे टिकते हैं या वैश्विक फाइनेंशियल सिस्टम में एक नई क्रांति की शुरुआत होती है।