कुछ लोग प्रचार में नहीं होते, फिर भी प्रेरणा बन जाते हैं। हर साल जब गणतंत्र दिवस आता है, हम परेड, झंडा, भाषण और वीरता पदक के बारे में बातें करते हैं। लेकिन एक और चीज़ है जो हर साल quietly घोषित होती है, पर उसकी गूंज वर्षों तक सुनाई देती है — पद्म पुरस्कार। ये सिर्फ पुरस्कार नहीं हैं — ये उस भारत की तस्वीर हैं, जो अखबारों में नहीं दिखता, टीवी स्क्रीन पर नहीं चमकता, लेकिन देश की आत्मा में गहराई तक बसा होता है।
भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले ये नागरिक सम्मान तीन श्रेणियों में आते हैं — पद्म विभूषण, पद्म भूषण, और पद्मश्री।
इनका आरंभ 1954 में हुआ था, और तब से हर साल ये उन लोगों को दिए जाते हैं जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में “असाधारण योगदान” दिया हो। यह कोई प्रतियोगिता नहीं, कोई क्विज़ शो नहीं, और न ही कोई टिकट टू फेम है। यह पुरस्कार उन लोगों के लिए हैं जिनकी कहानी कोई और नहीं कहता — तो देश खुद उन्हें चुनकर कहता है, “हमने तुम्हें देखा है। हम जानते हैं तुम कौन हो।”
2025 में कुल 139 लोगों को पद्म पुरस्कार दिए गए हैं —
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7 को पद्म विभूषण
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19 को पद्म भूषण
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113 को पद्मश्री
इनमें से कई नाम बेहद चर्चित हैं — लेकिन इस बार की सबसे खूबसूरत बात ये रही कि 30 गुमनाम नायकों को सम्मान मिला। ये वो लोग हैं जो गांवों के स्कूलों में पढ़ाते रहे, जंगलों में आदिवासियों के लिए काम करते रहे, शास्त्रीय रागों को जिंदा रखते रहे — और कभी खुद को महान नहीं माना।
क्या मिलती है कोई इनामी राशि या सुविधा?
बहुतों को लगता है कि शायद इस सम्मान के साथ पैसा भी मिलता होगा, या फिर सरकार से कोई सुविधा।
सच्चाई यह है — पद्म पुरस्कार पूरी तरह “अमूर्त” हैं।
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कोई पैसे नहीं मिलते।
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न ही मुफ्त एयर टिकट, रेलवे पास या कोई VIP ट्रीटमेंट।
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मिलती है तो सिर्फ सम्मान की मुहर, और एक ऐसा मेडल जो जीवनभर की साधना का प्रतीक होता है।
राष्ट्रपति के हाथों दिया गया ये पदक उस पल को अमर बना देता है।
कैसे चुने जाते हैं पद्म पुरस्कार विजेता?
सरकार हर साल एक ओपन पोर्टल के ज़रिए नामांकन मांगती है।
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कोई भी व्यक्ति खुद को नामांकित कर सकता है।
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कोई सांसद, विधायक, NGO, यहां तक कि आम नागरिक भी किसी का नाम भेज सकता है।
एक उच्चस्तरीय समिति हर नाम की पृष्ठभूमि की जांच करती है — क्या उसका योगदान किसी एक क्षेत्र में वाकई असाधारण है? क्या उसका कार्य प्रभावी, स्थायी और स्वार्थहीन रहा है?
और फिर शुरू होता है गुमनाम से महान बनने की यात्रा।
पद्मश्री के चमकते सितारे
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अरिजीत सिंह — वो आवाज़ जो दिलों के तार छेड़ती है। कोई म्यूजिक रियलिटी शो का प्रोडक्ट नहीं, बल्कि एक साधक जिसने सुरों को साधा।
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बुधेन्द्र जैन — विज्ञान में अद्वितीय योगदान देने वाले, जिनका नाम शायद आपने कभी नहीं सुना, लेकिन जिन्होंने भारत की साइंटिफिक दुनिया को नई दिशा दी।
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बेगम बतूल — वो महिला जिन्होंने वर्षों तक समाज में बदलाव की लौ जलाई, बिना किसी समर्थन या कैमरे के।
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आर अश्विन — क्रिकेट का वह बौद्धिक चेहरा, जिसने बल्ले और गेंद दोनों से खेल को नया आयाम दिया।
पद्म भूषण के प्रेरणादायक चेहरे
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शेखर कपूर — भारतीय और वैश्विक सिनेमा को जोड़ने वाले विज़नरी निर्देशक।
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साध्वी ऋतंभरा — सामाजिक क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं के सशक्तिकरण का प्रतीक चेहरा।
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पंकज उधास (मरणोपरांत) — वो आवाज़ जो दशकों तक ग़ज़ल के सुरों को जीवित रखे रही।
पद्म विभूषण के उच्चतम सम्मान
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जस्टिस जेएस खेहर — न्यायपालिका के निष्पक्ष और स्वतंत्र स्तंभ।
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लक्ष्मीनारायण सुब्रमण्यम — जिन्होंने वायलिन को साधना नहीं, इबादत बनाया।
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एमटी वासुदेवन नायर (मरणोपरांत) — जिनकी कहानियाँ मलयालम साहित्य की आत्मा हैं।
ये सिर्फ पुरस्कार नहीं हैं… ये प्रेरणाएँ हैं
हर बार जब हम पद्म पुरस्कारों की सूची पढ़ते हैं, हम सिर्फ नाम नहीं पढ़ रहे होते – हम एक-एक प्रेरणा को देख रहे होते हैं। हर नाम के पीछे संघर्ष, साधना और समर्पण की एक कहानी होती है। ये हमें याद दिलाते हैं – “नाम बड़ा होना ज़रूरी नहीं, काम बड़ा होना चाहिए।”
एक सवाल जो हर युवा को खुद से पूछना चाहिए
“क्या मेरा काम ऐसा है, कि अगर मैं गुमनाम रहूं फिर भी देश मुझे एक दिन पहचाने?”
अगर जवाब हां है — तो एक दिन, हो सकता है अगली पद्म पुरस्कार सूची में आपका नाम हो। पद्म पुरस्कार 2025 की सूची हमें यह समझाती है कि भारत सिर्फ IT, क्रिकेट और बॉलीवुड का देश नहीं है। यह देश उन लाखों लोगों का भी है जो चुपचाप बदलाव ला रहे हैं।
तो अगली बार जब कोई पूछे — “हीरो कौन है?” तो उन्हें ये सूची दिखाइए। क्योंकि असली हीरो वही हैं, जिनका नाम कोई नहीं जानता — पर जिनका काम सब महसूस करते हैं।