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Mental Toughness : बिना मेडिकल सबूत पति पर ‘नपुंसकता’ का आरोप मानसिक क्रूरता : हाई कोर्ट

Mental Toughness : बिलासपुर।  छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि पत्नी, पति पर बिना किसी चिकित्सकीय प्रमाण के “नपुंसक” होने जैसा गंभीर आरोप लगाती है, तो यह मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है और इसे तलाक का वैध आधार माना जा सकता है। न्यायालय ने इस आधार पर जांजगीर-चांपा फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए पति को राहत दी है।

सात वर्षों से अलग रह रहे थे दोनों, 2022 में पति ने मांगा था तलाक

यह मामला जांजगीर-चांपा जिले के एक व्यक्ति से जुड़ा है, जिसकी शादी 2 जून 2013 को बलरामपुर जिले के रामानुजगंज निवासी महिला से हुई थी। पति बैकुंठपुर की चरचा कॉलरी में शिक्षाकर्मी के रूप में पदस्थ था, जबकि पत्नी एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता थी। विवाह के कुछ समय बाद ही पत्नी ने पति पर नौकरी छोड़ने या तबादला कराने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। वर्ष 2017 से दोनों पूरी तरह अलग रहने लगे, और वर्ष 2022 में पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दायर की।

पत्नी के आरोप निराधार: कोर्ट ने माना मानसिक उत्पीड़न

तलाक की कार्यवाही के दौरान पत्नी ने यह आरोप लगाया कि पति यौन संबंध बनाने में असमर्थ है। लेकिन जब कोर्ट ने इससे संबंधित मेडिकल सबूत मांगे तो महिला कोई प्रमाण पेश नहीं कर सकी। कोर्ट ने इसे मानसिक प्रताड़ना और अपमानजनक आरोप करार दिया। हाई कोर्ट ने माना कि ऐसे आरोप व्यक्ति के सम्मान और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं और इस आधार पर विवाह को जबरन बनाए रखना न्यायसंगत नहीं है।

पति पर झूठे आरोप, सामाजिक सुलह को भी नकारा

पति ने अदालत को बताया कि पत्नी ने उस पर पड़ोस की महिला के साथ अवैध संबंध का झूठा आरोप लगाया। इतना ही नहीं, जब समाज के कुछ सदस्यों ने दोनों के बीच सुलह कराने का प्रयास किया, तो पत्नी ने वहां भी अपने जीजा के साथ झगड़ा कर लिया। हाई कोर्ट ने इन तथ्यों को भी क्रूरता के साक्ष्य मानते हुए कहा कि बिना साक्ष्य के इस प्रकार के आरोप और व्यवहार विवाहिक संबंधों को अपूरणीय क्षति पहुंचाते हैं।

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फैसला: विवाह को बनाए रखना अब अनुचित

न्यायालय ने अपने फैसले में कहा—

“पति द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य यह सिद्ध करते हैं कि पत्नी ने उस पर मानसिक और सामाजिक रूप से अत्याचार किए। ऐसे में विवाह को जीवित रखना न्याय और विधि दोनों के विरुद्ध होगा।”

हाई कोर्ट ने अंततः फैमिली कोर्ट के निर्णय को “गंभीर त्रुटिपूर्ण” करार देते हुए तलाक मंजूर कर दिया।

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