रायपुर, छत्तीसगढ़: Shankaracharya. Statement : रावणभाटा स्थित सुदर्शन संस्थानम शंकराचार्य आश्रम में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने समाज में बढ़ती कुछ गंभीर प्रवृत्तियों पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने शादी के बाद पति की हत्या की घटनाओं को आत्मिक पतन करार दिया और समाज को आत्ममंथन करने की सलाह दी। इसके साथ ही, उन्होंने हिंदी भाषा के विरोध और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को गाय देने की योजना जैसे मुद्दों पर भी अपने विचार साझा किए।
Shankaracharya. Statement : पति की हत्या: “यह प्रेम नहीं, आत्मिक पतन है”
शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने शादी के बाद पति की हत्या जैसी घटनाओं पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, “आजकल जिन पर फिदा होकर लोग शादी करते हैं, वही महिलाएं अपने पति को मरवा दे रही हैं।” उन्होंने सवाल उठाया, “फिर सवाल उठता है कि जिनसे दूसरा विवाह किया, उसकी हत्या नहीं होगी, इसकी क्या गारंटी है?” उन्होंने ऐसी घटनाओं को प्रेम नहीं, बल्कि आत्मिक पतन बताया, और कहा कि “जब कोई महिला अपने पति को मरवाकर दूसरी शादी करती है, तो क्या भरोसा है कि वह अपने दूसरे पति के साथ ऐसा नहीं करेगी?”
हिंदी भाषा पर जोर: “क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान, पर हिंदी का अनादर नहीं”
हिंदी भाषा को लेकर महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में चल रहे विरोध पर शंकराचार्य ने अपनी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, “महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे राज्यों के लोग जब दिल्ली आते हैं तो हिंदी में ही बात करते हैं। तो फिर अपने राज्य में हिंदी का विरोध क्यों?” उन्होंने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि कई लोग अंग्रेजी न बोल पाने के बावजूद हिंदी बोलने में शर्म महसूस करते हैं। शंकराचार्य ने कहा कि हिंदी बोलना जरूरी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान सबको है, लेकिन हिंदी का अनादर करना उचित नहीं है।
गौ-पालन पर बल: “आदिवासियों को गाय देना गौ-रक्षा का तात्पर्य”
छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को गाय देने की योजना पर भी शंकराचार्य ने अपने विचार रखे। उन्होंने ‘आदिवासी’ शब्द को एक भ्रामक शब्द बताया और पूछा कि क्या वशिष्ठ आदिवासी नहीं थे? उन्होंने इस योजना का समर्थन करते हुए कहा कि “गौहत्या ना हो, उनका पालन हो इसलिए गाय दे रहे हैं।” उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि वे गौ-संरक्षण के लिए दक्षिण भारत में 1970-71 में पैदल घूमे हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे भी क्षेत्र हैं जहां गाय की पहचान नहीं है। शंकराचार्य के अनुसार, आदिवासियों को गाय देने का तात्पर्य गौ-रक्षा करना और गौवंश का पालन सुनिश्चित करना है।